Opinion- दादा आप चूक गए, कोलकाता कांड से बंगाल उबला; आप शांत कैसे रह गए!

नई दिल्ली: करोड़ों फैंस के प्यार और उनके जुनून ने भारतीय टीम को क्रिकेट की नई परिभाषा बना दिया है। आज भले ही मैदान पर आक्रामकता का पर्याय विराट कोहली, टाइमिंग का मतलब रोहित शर्मा और एडमिनिस्ट्रेशन का मतलब जय शाह हैं, लेकिन एक वक्त था जब इसकी शुर

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नई दिल्ली: करोड़ों फैंस के प्यार और उनके जुनून ने भारतीय टीम को क्रिकेट की नई परिभाषा बना दिया है। आज भले ही मैदान पर आक्रामकता का पर्याय विराट कोहली, टाइमिंग का मतलब रोहित शर्मा और एडमिनिस्ट्रेशन का मतलब जय शाह हैं, लेकिन एक वक्त था जब इसकी शुरुआत सौरव गांगुली से होती थी और उन्हीं पर खत्म हो जाती थी। वह हर फन में माहिर थे। उनके तेवर से हर कोई खौफ खाता था। महान सचिन तेंदुलकर, द वॉल राहुल द्रविड़ जैसे धाकड़ों के लिए ऑफ साइड के भगवान सौरव गांगुली को संभाल पाना मुश्किल था। वह ईंट का जवाब पत्थर और पत्थर का जवाब तोप से देना जानते थे और देते थे, लेकिन हाल बंगाल के ब्रांड एंबेसडर होते हुए भी कोलकाता डॉक्टर रेप-मर्डर कांड में उनका बैकफुट पर खेलना समझ नहीं आया।
वह बेटी सना के साथ मैदान पर उतरे, मोर्चा भी संभाला, लेकिन टाइमिंग में पिछड़ गए थे। शॉट (मोर्चे) में वो ताकत नहीं थी, जो बंगाल टाइगर के कद की बराबरी कर सके। वो पैनापन नहीं था और न ही वो जुझारूपन। बंगाल आज भी उबल रहा है। हर किसी के मन में गुस्सा है तो भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सौरव भावुक जरूर हैं, लेकिन बैकफुट पर हैं। उन्होंने दबी जुबां में विरोध प्रकट तो किया, लेकिन यह भी कह गए कि कोई एक घटना बंगाल को परिभाषित नहीं कर सकता। वह चाहते तो उनका मार्च लंबा होता। कानून बनने तक लड़ते तो बिल्कुल क्रिकेट करियर की तरह किसी क्रांति के प्रतीक होते। उनकी इस कप्तानी का सैकड़ों सालों तक लोग गुणगान होता और किसी बेटी, बहन या मां पर कोई फिर ऐसा अनरगल, वहशीपन, बेरहमी और दरिंदगी दिखाने की हिम्मत तो छोड़िए सोचने भर से रूह कांप जाती, लेकिन दादा आप चूक गए।

याद है जब 15 टेस्ट जीतकर भारत को हराने पहुंचे ऑस्ट्रेलियाई दंभी कप्तान स्टीव वॉ के तेवर ढीले कर दिए थे। 2001 की वो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज भारतीय टेस्ट इतिहास को बदलने वाली थी। वॉ धाकड़ कप्तान थे। बेहतरीन खिलाड़ी थे, लेकिन उन्हें इस बात का घमंड था कि कोई उनकी टीम को हरा नहीं सकता है। कहा जाता है प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने खुलेआम इस बात का ऐलान किया था कि भारत कहीं टिकेगा नहीं। पहला मैच हारने के बाद सौरव गांगुली की टीम ने वापसी की और ऑस्ट्रेलिया पर जीत हासिल की। वॉ का करियर यहीं से उल्टी दिशा में बहने लगा। दादा ने उन्हें धूप में टॉस के लिए इंतजार करवाकर बता दिया कि उन्हें यूं ही नहीं बंगाल टाइगर कहते हैं।

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इंग्लैंड के मशहूर लॉर्ड्स स्टेडियम की बालकनी से टी शर्ट लहराने को कौन भूल सकता है। 2002 में एंड्रयू फ्लिंटॉफ कप्तान नासिर हुसैन के उकसाने पर मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में जीत के बाद टी शर्ट लहराई थी, जिसका जवाब भारतीय कप्तान सौरव गांगुली ने नेटवेस्ट ट्रॉफी का फाइनल जीतने के बाद दिया। लॉर्ड्स की बालकनी में अपने साथियों के साथ खड़े सौरव गांगुली ने टी शर्ट जब हवा में लहरानी शुरू की तो अंग्रेजों का चेहरा देखने लायक था। यह भारतीय क्रिकेट इतिहास में गौरव का प्रतीक बन गया। पहला मौका था जब कभी गुलाम देश रहे भारत के किसी नौजवान ने अंग्रेजों की छाती (इंग्लैंड में) पर तांडव किया था।

सौरव गांगुली ऐसे कप्तान (लीडर) रहे, जिन्होंने विदेशों में जीतना सीखाया। वह बेस्ट टैलेंट हंट (सिलेक्टर कह सकते हैं) करते थे। युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग, एमएस धोनी, हरभजन सिंह जैसी प्रतिभाओं को खेल में लाने का श्रेय उन्हें जाता है। उन्होंने रोहित शर्मा को कप्तान बनाया, जिन्होंने टी20 विश्व कप जीता। ऐसा नहीं कि क्रिकेटर के तौर पर ही वह आक्रामक थे। उनकी दादागिरी का अंदाजा इस बात से लगाया सकता है कि उन्होंने बीसीसीआई प्रमुख के पद पर रहते हुए कथित तौर पर भारत के पोस्टर बॉय विराट कोहली की सत्ता उखाड़ दी। एक लाइन में कहा जाए तो सौरव गांगुली शॉट सिलेक्शन से लेकर टामिंग तक में माहिर थे। हर चीज पर उनका कंट्रोल होता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है।



यही वजह है कि हर किसी के मन में सवाल है कि हमेशा न्याय के लिए खड़े रहने वाले आक्रामक सौरव गांगुली कोलकाता डॉक्टर रेप-मर्डर कांट पर शांत क्यों हैं? गांगुली ने शिष्टाचार के तहत ही क्यों नहीं बंगाल ब्रांड एम्बेसडर का पद छोड़ा? आखिर किसी बात का उन्हें डर था जो देर से सड़क पर उतरे? माफ करना दादा इस बार आप चूक गए। एक बेटी का युद्ध हार गए। आखिर कब तक भीड़ में खड़े यूं देखते रहेंगे? आप कब तक बंगाल के 'प्रिंस' ही बने रहेंगे, आखिर कब तक दीदी की छाव में ब्रांडिंग करते रहेंगे...? इस मामले से आपकी छवि धूमिल हुई है। बंगाल को 'दादा' (भाई) की जरूरत है। उस कप्तान, लीडर, एडमिनिस्ट्रेटर की जरूरत है, जिसे जगमोहन डालमिया ने सींचा था।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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